रविवार, 18 सितंबर 2011

बेवफा

बेवफा

आती है तेरी याद , रोते हैं बेबसी में,

इक बेवफा को, चाहा था ज़िंदगी में,

कर रहा हूँ , फिर भी , याद तुम्हें,

क्योंकि "प्रकाश" के लिए आसान नहीं,

अपने खुदा की इबादत को छोड़ना,

एक रिश्ता तोड़कर ,आसानी से दूसरा जोड़ना।

एक उसूल होता है, हर "प्रकाश" का,

दूसरों के लिए उजाला लाता है,

पर खुद के पीछे कालिमा होती है।

क्या, ऐसी चाहत नहीं हो सकती थी तुम्हारी?

क्या, ये बेवफाई प्यार का दूसरा पहलू है?

ठीक उसी तरह , जैसे कि

हर दिन के पीछे एक रात होती है,

हर "उज्ज्वला" के पीछे एक अंधेरा होता है।

और, हर कृष्ण के पीछे एक राधा होती है।

न जाने क्यों, मुझे लगता है कि तुम,

तुम आज भी यहीं कहीं आस-पास हो,

जैसे कि, तुमको मेरी लंबी तलाश हो,

यदि यही सत्य है, तो तुम,

उसी तलाश को मन में लिए ,

उसी पलाश के पेड़ के पास मिलना कभी,

जहाँ गुज़ारी थी हमनें , चंद घड़ियाँ ,

जो अनमोल थे, अमर थे।

--- ओम प्रकाश